संवत् 2081 वि. माघ कृष्ण पंचमी डायनासोर दिनाक 19 जनवरी 2025 ई
अपने धार्मिक विरासतों की पुनः प्राप्ति का प्रयास धार्मिक विरासतों को पुनः प्राप्त करने का प्रयास
-श्रीशंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती 1008
कोई बलवान किसी निर्बल को ना सताए। किसी भी बड़े छोटे मछली पकड़ने की सुविधा ना जाए, इसी के लिए राज्य शासन और न्याय पृष्ट की कल्पना की गई है। कोई भी क्रांतिकारी अत्याचारी करे और उसका प्रतिकार भी पीड़ित पक्ष न कर सके – यह अत्याचारी विद्रोही है। हमारे धर्मस्थलों पर इतिहास में बर्बर अत्याचार हुए हैं। हम सनातनधर्मियों ने इन्हें कभी स्वीकार नहीं किया है। ये अत्याचारी केवल मंदिरों/मूर्तियों को तोड़ना, उन पर कब्जा करना और अन्य धर्मस्थलों के दर्शन करना नहीं चाहते हैं, हमारी भूमि, नाम, प्रतिष्ठा आदि पर भी हमले हुए हैं।
उद्गार परमाराध्य परमधर्माचार्य उत्तराम्नाय ज्योतिषपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वमिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती 1008 ने आज परमधर्मसंसद में कहा।
उन्होंने धर्मादेश जारी करते हुए कहा कि हमें अपनी पुनः प्राप्ति प्राप्ति या पुनरुद्धृत करने के लिए अपना प्रयास साख जारी रखना चाहिए। जो लोग यह कह रहे हैं कि हमें यथास्थिति स्वीकार कर लेनी चाहिए, हमारा मानना है कि वे पूर्व में एक बार फिर से विद्रोह कर रहे हैं, जो कि नहीं है।
आगे कहा गया कि हमारे शास्त्रों का स्पष्ट उद्घोष है कि – सर्वान् बलकृतानर्थान अकृतान मनुब्रवीत्। अर्थात बलपूर्वक असंबद्ध कर दिया गया कोई भी कार्य समान नहीं है। शास्त्र कहता है – अधर्मेनैधते तावत् ततो भद्राणि पश्यति। ततः सपत्नान् जयति समूलं हि विनश्यति।। यही हाल उन सभी को बलपूर्वक प्रतिबंधित करने वाले अत्याचारी लोगों पर लागू होता है कि उनका मूल विनाश होगा।
घर का मालिक जयोधोष से हुआ। श्री देवेन्द्र पांडे जी के घर में श्री देवेन्द्र पांडे जी की स्थापना हुई। विषय स्थापना मूल धर्मवाद हर्ष मिश्र ने किया।
आज सदन में विशिष्ट अतिथि के रूप में जगद्गुरु राघवाचार्य जी उपस्थित रहे। उन्होंने अपने उद्दान में कहा कि हिंदू जनमानस का स्थान बोध के धर्म पालन के लिए है, हम किसकी बात करते हैं। ऐसे समय में सारे विधर्मी जो स्वयं धर्म का ज्ञान नहीं रखते हैं वे धर्म का उपदेश दे रहे हैं जिससे आम जनमानस के मन में भ्रम पैदा हो रहा है कि क्या सही है और क्या गलत है। ज्योतिषपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य द्वारा इस परम धर्मसंसद में सभी भक्तों से दूर होकर उन्हें धर्म पालन के लिए एक निर्देश दिया जा रहा है।
इस धर्म संसद में गौ माता की रक्षा को लेकर, हमारे सनातन वेद आदि को लेकर, धर्माचार्यों की महिमा और सिद्धांतों को लेकर, हमारे मठ, मंदिरों और विरासतों की रक्षा को लेकर चर्चा हो रही है जो लोगों के लिए धर्मपालन अति महत्वपूर्ण है।
आज का विषय धार्मिक विरासतों की पुनः प्राप्ति पर कहा गया है कि कुछ लोगों का कहना है कि हमको जो मिल गया था उसे अब छोड़ दिया गया है, लेकिन मैं कहता हूं कि हमारे मठ का उल्लेख करना चाहते हैं जिस पर मस्जिद बनाकर उस पर मस्जिद बनाई गई है हम उन लोगों की खोज करेंगे और अपनी विरासतों की प्राप्ति करके वहां अपनी प्राचीन संस्कृति की स्थापना करेंगे।
आज वनदेवी जी, नरोत्तम त्रिपाठी जी, आर्यशेखर जी, सुनील शुक्ल जी, महावीर कुमार शर्मा जी, रोहिताश शर्मा, अनुसूया प्रसाद उनियाल, सविता मौर्य, गोल्डनिम बरनवाल आदि ने चर्चा में भाग लिया।
आज कश्मीरी पण्डितों की पुनः स्थान की प्राप्ति, कुम्भ क्षेत्र में पक्का निर्माण हटाए जाने और गंगा यमुना की धारा में गिर रहे नालों को रोकने के सन्दर्भ में प्रासंगिक प्रस्ताव सदन में लाए गये।
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*धर्म के नाम पर अधर्म है धर्मजगत् का प्रदूषण*
*परमाराध्य जगतगुरु शंकराचार्य जी महाराज*
सं. २०८१ माघ कृष्ण षष्ठी तदनुसार दिनाङ्क 20 जनवरी 2025 ई.
अभ्युदय अर्थात् लौकिक उन्नति और निःश्रेयस अर्थात् पारलौकिक लक्ष्यों की प्राप्ति करने वाले कर्मसमूह को धर्म के नाम से जाना गया है।सतर्कता में शिथिलता धर्म-कर्म को भी प्रदूषित कर देती है,जो कि आज धर्म के प्रत्येक क्षेत्र में फैलती दिखाई दे रही है।आज हमारा ख़ान-पान ही नहीं, अन्न-जल तक प्रदूषित हो गया है।पूजा की सामग्री प्रदूषित है।मन्त्र-अनुष्ठान प्रदूषित हैं,भाषा-भाव और भङ्गिमा भी प्रदूषित हो रहे हैं।नये-नये देवता बनते जा रहे हैं।धर्म-अधर्म से मिश्रित हो रहा है।यदि अधर्म अपने स्पष्ट रूप में हमारे सामने आए तो बहुत सम्भव है कि हम उससे बच सकें पर जब वह धर्म के रूप में हमारे सामने आता है तो उससे बचना कठिन हो जाता है।भागवत जी में व्यास जी ने अधर्म की उन पाँच शाखाओं का उल्लेख-विधर्म,परधर्म,आभास,उपमा और छल कहकर किया है।यही धार्मिक प्रदूषण है जो अधर्म को धर्म के रूप में प्रस्तुत कर हमें गर्त में ले जा रहा है।
उक्त बाते आज परमधर्मसंसद में धार्मिक प्रदूषण पहचान एवं निवारण विषय पर परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानन्द: सरस्वती १००८ ने कही।
आगे कहा की विधर्म माने धर्म समझकर करने पर भी जिससे धर्मकार्य में बाधा पडती हो जैसे यहूदी,पारसी,ईसाई, इस्लाम आदि।परधर्म माने अन्य के द्वारा अन्य के लिए उपदिष्ट धर्म जैसे ब्रह्मचारी का गृहस्थ को, गृहस्थ का संन्यासी को। आभास स्वेच्छाचार जो धर्म सा लगता है जैसे अनधिकारी का संन्यास। उपमा माने पाखण्ड/दम्भ तथा छल माने शास्त्र वचनों की अपने मन से की गयी व्याख्या या उनमें अपने मनमाना बदलाव कर देना।समस्त सनातनधर्मियों को सतर्क रहकर धर्म के सच्चे स्वरूप को समझते हुए धार्मिक प्रदूषणों से बचकर रहने की आवश्यकता है। परमधर्मसंसद् १००८ एक पुस्तिका के माध्यम से हिंदुओं तक इस बारे में समझ विकसित करने का प्रयास करेगी।
आज विशिष्ट अतिथि के रूप में महामण्डलेश्वर श्री स्वामी आशुतोष गिरी जी महाराज उपस्थित रहे। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि देश में गौ हत्या पूर्णतः प्रतिबन्धित हो और गौ माता को राष्ट्र माता का दर्जा मिले इसके लिए हम सबको एकजुट होकर आवाज उठानी चाहिए। इस गौ प्रतिष्ठा आन्दोलन में हम ज्योतिष्पीठ के शङ्कराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द जी के साथ हैं और हर वो सम्भव प्रयास करेंगे जिससे इस आन्दोलन को सफलता मिले।
परमधर्मसंसद का शुभारम्भ जयघोष से हुआ। प्रश्न काल के बाद परम गौ भक्त श्री गोपालमणि जी ने विषय की स्थापना की। उन्होंने कहा कि दूध में उत्पाद कर उसे शामिल करने वालों को समाप्त कर देना भी दोष नहीं है आज सदन में अन्न जल के बारे में चर्चा हुई। प्रदूषण विषय पर अपोलो जी ने,परम्परा में प्रदूषण विषय पर स्वामी ज्ञानतीर्थ जी ने,राजनीतिक विषय पर डेमोक्रेट पैमाने जी ने,मंदिरों में प्रदूषण विषय पर अजय शर्मा जी ने भाग लिया।इसमें अतिरिक्त क्षमता सिंह,राहुल साहू,सुन शुक्ला, अनुसुइया प्रसाद उनियाल, फलाहारी बाबा, डॉक्टर गजेंद्र यादव, जोशे हरमन, गुंजलों, संजय जैन, ब्रह्माचारी हार्टानंद, नचिकेता चौधरी, राहुल पहलवान, मधुर राय, आदि ने भी चर्चा में भाग लिया। प्रकर धर्मगुरु के रूप में श्री महामहिम जी ने संसद का संचालन किया।
उक्त जानकारी परमधर्माचार्य शंकराचार्य जी महाराज के मीडिया प्रभारी संजय पांडे के माध्यम से प्राप्त हुई है।
प्रेषक
संजय पांडे-मीडिया प्रभारी।
परमाराध्य परमधर्माधिकारी ज्योतिषपीठाधीश्वर जगद्गुरु पितृ जी महाराज।