क्रांतिकारी, प्रख्यात पत्रकार, पूर्व सांसद एवं समाजसेवी परिपूर्णानन्द पैन्यूली राजशाही के बाद लोकशाही को हरा कर इतिहास पुरुष को शत शत नमन Revolutionary, renowned journalist, former MP and social worker, Paripurnanand Painuli, a tribute to the man of history who defeated democracy after monarchy.

देहरादून। टिहरी राज्य की जनक्रांति के स्तम्भ, स्वाधीनता आन्दोलन के किशोर क्रांतिकारी, प्रख्यात पत्रकार, पूर्व सांसद एवं समाजसेवी परिपूर्णानन्द पैन्यूली अब भले ही हमारे बीच नहीं हैं लेकिन जब तक भारत के स्वाधीनता आन्दोलन और हिमालयी रियासत टिहरी का इतिहास रहेगा तब तक पैन्यूली का नाम भी जीवित रहेगा। पैन्यूली ऐसे शख्स थे जिन्होंने बाल्यकाल से ही अपने विद्रोही तेवरों के कारण इतिहास रचना शुरू कर दिया था। पहला इतिहास उन्होंने टिहरी की राजशाही की उस जेल से फरार होकर रचा जिस जेल में श्रीदेव सुमन ने 84 दिन की भूख हड़ताल के बाद प्राण त्यागे थे।

दूसरा इतिहास भारत के दीर्घतम् राजवंशों में से एक पंवार वंश के शासन को ध्वस्त करने वाली टिहरी की जनक्रांति का नेतृत्व करने पर रचा। तीसरा इतिहास उन्होंने गढ़वाल की राजनीति में अजेय माने जाने वाले पंवार वंश के अंतिम महाराजा मानवेन्द्र शाह, जिन्हें बोलान्दा बदरीनाथ या जीता जागता बदरीनाथ भी कहा जाता था, को चुनावी मुकाबले में परास्त कर रचा। पैन्यूली उस ऐतिहासिक लोकसभा के सदस्य रहे जिसका कार्यकाल 6 साल था और जिसके कार्यकाल में इमरजेंसी भी लगी थी। क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण मात्र 17 साल की उम्र में 5 साल की सजा पाना।

जेल से ही बारहवीं की परीक्षा देना और हिमालयन हिल स्टेट रीजनल काउंसिल के चुनाव में हिमाचल प्रदेश के निर्माता डा. यशवन्त सिंह परमार को परास्त करना ,हिमाचल प्रदेश के  दो बार  प्रदेश अध्यक्ष के पद पर  चुनाव में विजय प्राप्त करने के बाद हिमाचल का विकास की योजना बनाई जो आज  पहाड़ी राज्य के विकास का रास्ता दिखा दिया है।जैसी घटनाएँ भी उनके ऐतिहासिक चरित्र को उजागर करती हैं। इस इतिहास पुरुष पर 2017 में ‘‘टिहरी राज्य के ऐतिहासिक जन विद्रोह’’ पुस्तक भी प्रकाशित हुयी है। परिपूर्णानन्द पैन्यूली का जन्म टिहरी रियासत के छोलगांव निवासी कृष्णानन्द पैन्यूली एवं एकादशी पैन्यूली के घर 19 नवम्बर 1924 ( सात गते मंगसीर सम्बत् 1981) को हुआ था। यह गांव टिहरी नगर से मात्र 5 मील दूर था। फिर भी उनके माता पिता टिहरी नगर में ही अपने पुश्तैनी मकान पर रहते थे। कृष्णानन्द पैन्यूली एवं श्रीमती एकादशी की 6 सन्तानें थीं। इनमें 3 पुत्र एवं 3 पुत्रियां थीं। परिपूर्णानन्द अपने भाई-बहनों में तो दूसरे नम्बर के थे लेकिन भाइयों में जेष्ठ थे।

कृष्णानन्द के तीन बेटों में से दो बेटे परिपूर्णानन्द और सच्चिदानन्द स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े। बालक पैन्यूली बचपन से ही विद्रोही स्वभाव का था। उसे टिहरी का वातावरण अनुकूल नहीं लगा तो प्रताप हाईकूल में सातवीं तक पढ़ाई के बाद एक दिन घर से भाग कर गाजियाबाद पहुंच गया। परिपूर्णानन्द को एक मनमाफिक विद्यालय की तलाश थी जो उन्हें ’महानन्द मिशन हाइस्कूल’ के रूप में गाजियाबाद में मिल गया। मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद परिपूर्णानन्द बनारस चले गये जहां उन्होंने राज दरबार के वजीफे से ’क्विन्स कालेज’ में दाखिला लिया। उनकी पढ़ाई चल ही रही थी कि उसी दौरान 1942 में “भारत छोड़ो आन्दोलन” शुरू हुआ तो बालक परिपूर्णानन्द अपने साथियों के साथ आन्दोलन की गतिविधियों में भाग लेने लगा ।

चूंकि, पैन्यूली जेल से भगोड़े थे और उनके प्रत्यर्पण की सारी औपचारिकताएं भी पूर्ण थीं इसलिये वह देश की स्वतंत्रता तक प्रतीक्षा करते रहे और 15 अगस्त 1947 को जैसे ही देश आजाद हुआ तो वह टिहरी चल पड़े। लेकिन उसी दिन उन्हें नरेन्द्रनगर में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।

पैन्यूली की गिरफ्तारी के बाद राजशाही के खिलाफ आन्दोलन और अधिक भड़क उठा। अखिल भारतीय लोक परिषद के नेताओं तथा कर्मभूमि के सम्पादक भक्त दर्शन आदि के हस्तक्षेप और भारी जनाक्रोश के चलते उन्हें सितम्बर 1947 में रिहा कर दिया गया। उसके बाद उन्होंने जनवरी 1948 की 15 तारीख तक राजशाही की हुकूमत पलटवाकर ही दम लिया। टिहरी विधानसभा के चुनाव और अन्तरिम सरकार के गठन में उनकी अहम भूमिका रही। यह चार सदस्यीय मंत्रिमण्डल भी 1 अगस्त 1949 को टिहरी के भारत संघ के संयुक्त प्रान्त में विलय तक चला।

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विलय की प्रक्रिया में भी पैन्यूली की अहम भूमिका रही। रियासत के विलय के साथ ही टिहरी संयुक्त प्रान्त का एक जिला बन गया और इसके साथ ही टिहरी प्रजामण्डल जिला कांग्रेस कमेटी के रूप में परिवर्तित हो गया। इस परिवर्तन के साथ ही पैन्यूली का कांग्रेेस में शामिल होना स्वाभाविक ही था। लेकिन विलय के बाद भी स्वतंत्र भारत में राज परिवार का गढ़वाल की कांग्रेसी राजनीति में वर्चस्व के चलते पैन्यूली को ज्यादा महत्व नहीं मिल पाया।

समाप्त किये जाने पर टिहरी राजपरिवार का इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस से दूर छिटकना स्वाभाविक ही था। इसलिये महाराजा मानवेन्द्र शाह जो कि 1957 से लेकर 1967 तक लगातार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत रहे थे, कांग्रेस (संगठन) में चले गये और 1971 के चुनाव में श्रीमती गांधी ने टिहरी से परिपूर्णानन्द पैन्यूली को कांग्रेस टिकट दे दिया।

महाराजा मानवेन्द्र शाह भी यह चुनाव निर्दलीय के रूप में लड़े मगर परिपूर्णानन्द पैन्यूली के हाथों पराजित हो गये। पैन्यूली को उस चुनाव में 79,820 मत और मानवेन्द्र शाह को मात्र 31,585 मत ही हासिल हो सके। पैन्यूली 1977 तक लोकसभा के सदस्य रहे। इस दौरान उन्हें पर्वतीय विकास निगम का अध्यक्ष भी बनाया गया।

देश के पत्रकार  साथियों को संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए  पत्रकार जीत मणि पैन्यूली संपादक  पहाड़ों की गूँज राष्ट्रीय साप्ताहिक समाचार पत्र  गांधी पार्क देहरादून में धरना प्रदर्शन मोन व्रत लेते हुए।

18 नवंबर 2023 को श्री बद्रीनाथ से  6 जनवरी 2024 को  हरिद्वार में  प्रेस  महा कुम्भ को सफ़ल बनाने के लिए प्रार्थना करने के बाद 

श्री बद्रीनाथ के रावल  एच एच श्री ईश्वरी प्रसाद  नंबूरी जी से कुम्भ कलश लेते हुए।

पैन्यूली का जन्म एक ब्राह्मण परिवार में अवश्य हुआ मगर वह छुआछूत के सख्त खिलाफ रहे। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिरों में अनुसूचित जातियों के श्रद्धालुओं का प्रवेश कराने में भी उनका योगदान रहा। वह कालसी में अनुसूचित जाति और जनजाति की निर्धन बालिकाओं के लिये संचालित आशोक आश्रम के संचालक भी रहे। एक पत्रकार के रूप में उत्तराखण्ड की पत्रकारिता में पैन्यूली एक बहुत बड़ा नाम हुआ करता था। वह टाइम्स आफ इंडिया समेत कई हिन्दी और अंग्रेजी पत्रों से जुड़े रहे तथा साप्ताहिक हिमानी अखबार के मुद्रक, प्रकाशक और संपादक रहे। उन्होंने सन् अस्सी के दशक में जयसिंह रावत के साथ मिल कर सांध्य दैनिक हिमानी का प्रकाशन भी कुछ समय के लिये शुरू किया। यही नहीं पैन्यूली ने एक दर्जन से अधिक पुस्तकें भी लिखीं। विन्सर पब्लिशिंग कम्पनी द्वारा परिपूर्णानन्द पैन्यूली पर 2017 में ‘‘टिहरी राज्य के ऐतिहासिक जन विद्रोह’’ पुस्तक प्रकाशित की ।

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