साइंटिफिक-एना बस
“राष्ट्रपति” पर महाअभियोग का संकट गहराया
सन 2025-26 के वित्त सत्र के साथ संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण से नए संसद सत्र की शुरुआत हो गई | इस अभिभाषण के बाद एक महिला ने राष्ट्रपति के संवैधानिक पद को अंतिम शब्द से अलंकृत कर दिया | इसका अधिकांश हिस्सा पुरातात्विक एवं पुरातात्विक शास्त्र ने इसे अलंकृत शब्द से अलंकृत करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। मीडिया ने अपने मठ के सिद्धांत जनप्रतिनिधि का चुनाव के साथ ही परमज्ञानी और किसी संवैधानिक पद मिल जाने पर व्यक्ति के संविधान और विधि के विधान का मर्मज्ञ हो जाने के तहत उसे हाथ पकड़ा और उसे धर्मगुरुओं के नाम के आगे चस्पा करने वाले अललम-लंबे बड़े-बड़े शब्दों की तरह पदवी के रूप में बदलाव का काम किया | सोशल मीडिया के ज्ञानियों ने रबड़ स्टाम्प के बाद कागजी शब्द के मिले ब्रह्मज्ञान से इसे बिना जारी किए अमृत प्रदान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी |
भारत की जनता हो या भारत की जनता। पिछले कुछ वर्षों से राष्ट्रपति पद के कार्यों को देखा तो उसे सच्चाई नजर आई तो उसने शैले सदा ली |
राष्ट्रपति इतने संबद्ध या शारीरिक रूप से चिंतित हो गए कि नए संसद-भवन पर राष्ट्रीय ध्वज का ध्वजारोहण नहीं किया जा सका और यह काम करने वाले पद पर आसीन हुआ | यदि वे दस्तावेजी नहीं हैं तो देश के पहले नागरिक और इतनी बड़ी और शक्तिशाली सेना के होने वाले प्रमुखों पर उन्हें स्वर्णिम अवसर पर वापस लाने पर लोग के भाव से अंतिम रूप धारण कर लेते हैं | अयोध्या में भगवान राम के मंदिर निर्माण के लिए लोग चारो कमरे वाले अति आधुनिक यंत्रों की सुरक्षा से महफूज महलनुमा निवास स्थान राष्ट्रपति भवन में सबसे पहले पहुंचते हैं और वो चंदे की पहली रसीद कटवाती हैं फिर भी उन्हें भगवान राम के मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा का दस्तावेज नहीं मिलाता तो साधु-संत और कोई भी धार्मिक आस्था रखने वाले लोग ग्लानि भाव से पवित्र ही आदर्श | राष्ट्रपति को प्राण-प्रतिष्ठा का स्मारक मिला और अपनी व्यवस्था या शारीरिक दुर्बलता के कारण नहीं मिला तो सभ्यता और संस्कृति को बनाए रखने वाले धर्मगुरु चित्रारी को ही आशीर्वाद दिया गया |
भारत की पहली महिला को राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त करने वाली सदी व मानस सभ्यता की सबसे घृणित व मानसिक रूप से ओछी व लज्जित घटना, एक महिला को निवस्त्र कर जादूगरों को नोचते हुए हुई, महाभारत के त्रेतायुग में भी नहीं बताई गई घटना हुआ उस पर पद सर्वोच्च पर होते हुए राष्ट्रीय सम्बोधन भी न करे और लडाकू हवाई जहाज में यात्रा करने में सक्षम बने उस महिला के पास सांत्वना और न्याय न दे पिए तो जनेऊ समाज अपनी बेटी को अंतिम रूप दे अपनी पहचान पत्थर और खून के फूल पर पत्थर भी लगा सकते हैं |
आकाश में स्वर्ग लोक भी कह दे या जानत भी वहां मौजूद सभी पवित्र आत्माएं सर्वशक्तिमान होती हैं भगवान के समान यश को सूखते हुए अंतिम रूप में ही अपने श्राप को रोक सकते हैं। निवस्त्र कर कुगाई गई महिला करिगल में लड़ै लाड जवान की धर्मपत्नी उस पर भी तीन थल, जल, वायु सेना के प्रमुख होने के नाते रक्षा न कर पाई तो देश के लिए तन-मन-धन न्योछावर कर सर्वक्षेष्ठ बलिदान करने को आतुर वीर युवा फिल्मी अभिनेत्री ही ऑर्डर पालना और सलामत दे सकती हैं |
एक महिला होते हुए भी सर्वोच्च पद पर बैठ गणतन्त्र दिवस के मंच से पुरी दुनिया को अपनी ताकत दिखाने वाली अपने पास की कुर्सी पर बैठे प्रधानमंत्री की पत्नी को बैठाकर भारत की सभ्यता व संस्कृति नारी को पूजने की होने का संदेश नहीं दे सकती तो दुनिया उसे बेचारी कहकर ही आगे बढ सकती हैं | प्रधानमंत्री ने अपने चुनावी पर्चे में धर्मपत्नी का नाम स्टाम्प पेपर पर नोटरी करवाकर दिया व तलाक न होने का प्रमाण कुछ न लिखकर प्रस्तुत किया तो इतिहास के अक्षरों में उसे बेचारी न लिखकर काल आगे कैसे बढ सकता हैं | दुनिया का कोई भी राष्ट्रा अध्यक्ष या शीर्ष नेतृत्व वाला व्यक्ति आता हैं तो अपनी पत्नी को साथ लाता हैं परन्तु उसका स्वागत राष्ट्रपति के आदेश पर प्रधानमंत्री बिना पत्नी के करते हैं तो मेहमान महिला को राष्ट्रपति को बेचारी समझकर आगे बढ जाने के अलावा शर्म छुपाने का क्या मार्ग बचता हैं |
(शैलेन्द्र कुमार बिराणी युवा वैज्ञानिक)
जी-ट्वन्टी सम्मेलन में दुनिया के शक्तिशाली लोकतन्त्र के प्रमुख भारतीय मीडिया के आगे झुककर उनके सवालों को सर्वोपरी मान जवाब देकर सम्मान देना चाहते थे परन्तु उन्हें दूसरे देश में जाकर प्रेस-कान्फ्रेन्स करनी पडी तो वो भारत की सर्वोच्य नागरिक को बेचारी न समझे तो अपने गुस्से व अपशब्दों को कैसे रोक सकते हैं | गरीबी, बेरोजगारी, भूखमरी, भ्रष्टाचार व खतरनाक वायरसों से बचने का उपाय राष्ट्रपति के पास रखा हैं व विश्वगुरु एवं अपार धन-दौलत के साथ विकसित बनने का प्रमाण दस्तावेजों में मौजूद होने पर भी राष्ट्र को देने का फैसला न ले पाये तो मानव प्रजाति व जीव-जंतुओं की प्रजातियां भी बेचारी न समझे बिना हर रोज की तकलीफों व पीडाओं को कैसे बर्दास्त कर सकते हैं |
कुम्भ मेले में गंगा किनारे लोगों को पैरों से रोंदकर सौभाग्य पूर्ण आत्मा के लिए परमगति मार्ग बनाकर मोक्ष देने के असम्भव काम को कर दिखाने पर भी राष्ट्रपति कार्यपालिका या तथाकथित सरकार की पीठ न थपथपा सके तो राष्ट्रपति-सचिवालय बेचारी माने बिना संसद का धन्यवाद प्रस्ताव कैसे स्वीकार कर सकता हैं |
संविधान संरक्षक व सर्वोच्च शक्तियां देने की शपथ दिलाने वाले भारत के मुख्य न्यायाधीश को गणतन्त्र दिवस पर राष्ट्रीय सलामी मंच पर न बैठाकर निचे बैठाने का सच जानने पर उस पर जवाब देने के लिए गृहमंत्रालय के सचिव को भेजे व सार्वजनिक रूप से लोगों के मध्य हो तब भी अधिकारी उसके आदेश को न माने व सूने और तवज्जों तक न दे तो उसे जी सर/जी मैडम कहने वाला तन्त्र बेचारी न समझे तो अपनी आत्मा को मारकर कैसे काम कर सकता हैं |
विपक्ष के रूप में देश की करीबन आधी जनता को उनकी तकलीफ सुन अपने द्वार से उल्टा पैर लौटाने पर विपक्ष उपराष्ट्रपति पर पहला अविश्वास लगाने के गौरव की तरह राष्ट्रपति पर पहला महाअभियोग के तमगे के अलावा दे भी क्या सकता हें, वो बेचारी समझकर आगे बढ भी नहीं सकता क्योंकि न्यायपालिका के लोकतान्त्रिक स्तम्भ को ध्वस्त करने हेतु उच्चतम न्यायालय को अलग झण्डा व प्रतिक देकर संविधान, भारत-सरकार से पृथक करने का काम जो शपथ की खुलेआम अवेहलना हैं वो शपथ दिलाने वाले भारत के मुख्य न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय, बार काउंसिल के साथ सभी राज्यों के हाइकोर्ट व मुख्य न्यायाधीश के पास पहुंच चुका हैं | इसके साथ सत्ता पक्ष व विपक्ष की सबसे बडी राजनैतिक पार्टीयों के इनबाक्स के माध्यम से उनके हाथों में सभी प्रमाणित दस्तावेजों के साथ पहुंच चुके है। अब देश की जनता ही नहीं न्याय की देवी भी देख रही हैं क्योंकि उसकी आंखों की पट्टी अब हट चुकी हैं |
शैलेन्द्र बिराणी
युवा वैज्ञानिक