कितने प्रधानमंत्री आए और गये,पर मोदी जैसा न आया कोई,खुद पाकिस्तान बोल रहा है
देहरादून।पहाड़ों की गूँज,भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है। यही नहीं, भारत दुनिया की चैथी सबसे बड़ी सैन्य ताकत भी है। दुनिया के किसी भी देश के साथ भारत के संबंध वर्तमान में मैत्रीपूर्ण ही रहे हैं। चाहे वह अमेरिका हो या फिर उसका धुर विरोधी रूस। भारत और उसके प्रधानमंत्री को जो सम्मान वैश्विक स्तर पर मिलता है, वह किसी और को दुनिया के किसी कोने में नहीं मिलता। हिंद में कितने पीएम आए, पर वह नहीं कर पाए, जो बतौर पीएम नरेंद्र मोदी ने किया, यही कारण रहा कि वह एकजुट विपक्ष होने के बावजूद लगातार तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री बन पाए। हम यह सब अपनी तरफ से नही कह रहे हैं। यह तो पाकिस्तान की उस दुखियारी, लाचार, बेबस और भुखमरी के दलदल में फंसी जनता के अंतर्निहित मन के उदगार हैं, जो भारत की परंपरागत दुश्मन रही है। परंतु आज वही भारत की उन्नति के गुणगान किए जा रही है। अब, जब दुश्मन आपकी तारीफ करने लगे तो फिर कुछ तो बात होगी, ष्जो हस्ती मिटती नहीं हमारी, जबकि सदियों रहा है दुश्मन, दौरे जहां हमारा। जिसमें अपने देश के भीतर पलने वाले जयचंद भी कहां पीछे रहे।
भारत दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश क्या बना कि चीन परेशान हो गया। दुनिया में जब यह घोषित किया गया कि भारत ने जनसंख्या के मामले में चीन को पीछे छोड़ दिया तो चीन ने प्रोपेगेंडा चलाया कि उसके पास गुणवत्ता है और भारत के पास सिर्फ संख्या बल। लेकिन इस क्रम में वह यह भूल गया कि अमेरिका और यूरोप की बहुराष्ट्रीय कंपनियां पर काबिज लोग भारतीय मूल के ही है। चीन को इससे भी खासी परेशानी हुई कि भारत जनसंख्या के मामले में उससे आगे निकल गया। चीन का तड़पना तो बनता था, लेकिन कुछ भारतीयों को भी बड़ी तकलीफ हुई और उनका भी हाजमा काफी दिनों तक खराब रहा। वह भारत की बढ़ती जनसंख्या का रोना रोते दिखाई पड़े। 2014 में भारत दुनिया की टॉप 10 अर्थव्यवस्थाओं में दूर दूर तक नही था। लेकिन, 2022 आते आते भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।
लेकिन, भारत जैसे ही पांचवें से छठे पायदान पर खिसकता, तो हमारे बीच के ही कुछ कथित नामाकूल लोगों की बांछे खिल जाती और उनका करुण क्रंदन भी आरंभ हो जाता। देश की तरक्की तो उन्हें कभी हजम नहीं होती और देश का पतन उनको खूब रास आता, लेकिन ऐसे दो मुंह वाले सर्पों के डसने के बाबजूद भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने वाला है, केवल इसकी आधिकारिक घोषणा होनी शेष है, लेकिन यह भी कुछ लोगों को हजम नहीं हो रहा है। उन्हें इससे भी दिक्कत है और ऐसे में उनकी ओर से प्रोपेगेंडा चलाये जाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है, लेकिन सच से सामना होते ही झूठ रेत में सिर छुपा लेता है, तो फिर ऐसे लोगों की बिसात ही क्या।
दुनिया भर की रेटिंग एजेंसी भारत की आर्थिक तरक्की का गुणगान कर रहीं हैं। सबसे तीव्र गति से विकास करने वाले देशों में भारत सबसे आगे है। मूडीज से लेकर फिच च तक सभी ने भारत के आर्थिक विकास की दर को 8 फीसदी के आसपास रखा है, लेकिन फिर भी कुछ तुच्छ लोग इन पर सवाल उठाते रहते हैं। यहां तक कि वह देश की आर्थिक प्रगति की तुलना आलू, प्याज, टमाटर, लौकी, कद्दू, बैंगन, भिंडी, कटहल इत्यादि के भाव से करने लगते हैं। अब ऐसों की शिक्षा और दीक्षा के लिए अनुकूल वातावरण कहां उपलब्ध हुआ, शायद ही कोई जानता हो। भारत में जहां ऐसे लोगों की कोई कमी नहीं है, तो वहीं दुनिया भर के दूसरे देश जिन्हें भारत का धुर विरोधी माना जाता है। वहां भारत की प्रगति की गाथाओं का गुणगान देखने को मिलता है। इनमें चीन और पाकिस्तान प्रमुखता से शामिल हैं। चीन, जिनके साथ भारत का सीमा विवाद है, व्यापार घाटा है, लोगों में भारत के प्रति कड़वाहट है और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कभी न समाप्त होने वाली प्रतिस्पर्धा भी है। परंतु इसके बावजूदभारत की उन्नति और अभूतपूर्व विकास को वहां की जनता भी खुले दिल से स्वीकार करती है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कल ही पंचशील का सिद्धांत याद आने लगा है, जिसका मतलब है शांतिपूर्ण सह अस्तित्व, पहले इसी चीन ने भारत का अक्साई चीन कब्जाया था। परंतु वर्तमान में भारत की बढ़ती ताकत को स्वीकार करने में शी जिनपिंग को भी कोई संकोच नहीं है। ताइवान को हड़पने की बात हो, फिलिपींस के साथ टकराव हो या फिर अमेरिका से अदावत हो। चीन किसी के आगे नहीं झुकता लेकिन उसे केवल भारत से ही खतरा महसूस होने लगा है। यही कारण है कि उसके सुर नरम पड़े हैं। इससे भी बुरा हाल उसके पिछलगू पाकिस्तान का है।
पाकिस्तान की जनता, जिसके लिए हालात किसी जहन्नुम से कम नहीं है। वह भारत से अपने विभाजन का अफसोस मनाती दिखाई पड़ती है। एक समय था जब पाकिस्तान और भारत की तुलना की जाती थी। लेकिन अब स्वयं पाकिस्तानी मानते हैं कि उनका देश भारत से कई दशक पीछे छूट गया है। पाकिस्तानियों के दिल में यह बात किसी कांटे की तरह चुभती है और यही कारण है कि वह भारत की प्रगति और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को अभूतपूर्व बताने में लेशमात्र भी संकोच नहीं करते। जबकि भारत के ही कुछ लोग अपने ही नेता का अपमान करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। पाकिस्तानी तो यहां तक कह जाते हैं कि भारत में कितने प्रधानमंत्री आए, लेकिन जो प्रगति और विश्व मंच पर धाक भारत ने विगत 10 वर्षों में अर्जित की है। उतनी कभी किसी के कार्यकाल में देखने को नहीं मिली। वह अपने हुक्मरानों की तुलना भारतीय प्रधानमंत्री से भी करते हैं। जिसमें उनका आक्रोश नवाज शरीफ, शाहबाज शरीफ, इमरान खान, मरियम नवाज, जैसे नेताओं पर बखूबी निकलता है। पाकिस्तानी अपनी सेना को भी आड़े हाथों लेने से नही चूकते। ऐसे में यह सहज ही समझा जा सकता है और वैसे भी इसे समझने के लिए किसी रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है कि पाकिस्तानियों के मन में भारत को लेकर इस प्रकार की सकारात्मक भावनाएं क्यों देखने को मिल रही है। वर्तमान में आर्थिक तंगहाली से जूझता पाकिस्तान अपने ही भंवरजाल में उलझ कर रह गया है, जो घास खाकर एटम बम बनाने की बात करते थे, उन्हें घास भी मयस्सर नहीं हो पा रही है। ऐसे में भारत से उसकी तुलना करना बेमानी है और अब पाकिस्तान की आम जनता भी इसे बखूबी समझ चुकी है और स्वयं को चीन का गुलाम मात्र समझने की मानसिकता विकसित करने में लगी हुई है, ताकि प्रतिरोध की रही सही गुंजाइश भी समाप्त हो जाए।